टप-टप टपकै बादळियां

चम-चम चमकै बीजळियां

सावण आग्यो छै।

झरमर को मौसम लाग्यो छै।

धरती नै ओढ्यो हरियो दुसालो।

मलबा आयो छै नत बादळ काळो।

गावै छै गीत पपइया

नाचै मोर्‌या-मोरणियां

तावड़ो भाग्यो छै।

धरती की पलटी काया

सब सोया ओढ़ रजायां

अब सी लाग्यो छै।

स्याळा को मौसम आग्यो छै।

सोड़-रजाई छोडी नंह जावै।

कपड़ा अर लत्ता अब मन भावै।

छूटी पीपळ की छाया

आया चलका मैं आया

धूजणो लाग्यो छै।

कू-कू बोलै कोयलियां

फूली आंबा की डाळ्यां

पतझड़ भाग्यो छै।

आग्यो बसंत अब आग्यो छै।

धरती नै ओढी साड़ी पीळी।

फूलां सूं लदगी चम्पा चमेली।

बूढा पत्ता सब खरग्या

अर नया पानड़ा भरग्या

फूलां लाग्यो छै।

अब गरमी का दन आया

झक्कर की चली कटार्‌यां

अब तप लाग्यो छै

माथा पै सूरज आग्यो छै।

टप-टप टपकै आज पसीनो।

माथा पै तपग्यो जेठ महीनो।

अब भूखी आवै गायां

अब सूख्या ताल तळायां

चलको लाग्यो छै।

स्रोत
  • पोथी : सरवर, सूरज अर संझ्या ,
  • सिरजक : प्रेमजी ‘प्रेम’ ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य संगम अकादमी ,
  • संस्करण : Pratham
जुड़्योड़ा विसै