यूं नीं हो जावै

पीहर अर सासरो

दोन्यां का गेला

घणा दौ'रा छै

लाड-कोड सूं पाळी

बेटी नै दूसरा कै

ताईं दे दे बो बेटी?

बाप नै काळज्यो

भगवान कै काळज्या सूं

बड़ो करणो पड़ै छै

जीं बेटी की छींक सूं

सारो घर भाग्यो-भाग्यो

फिरै जावै छै

अर,

अेक नान्ही सी पुकार में

बाप-भाई दोन्यूं

हाथ बांध्यां खड़ा रह छै

मूंडा को खातों गास

बेटी की अेक कराहट से

थाळी में रह जावै छै

यो होवै है पीहर!

वाही बेटी सासरा में

चाकरी में

अेक पग पर चकरी की

नाईं फरती फिरै छै

अब उणकी चीख में बी

छींक सो दर्द होवें

जुबान कै घूंघट को

ताळो लगा'र,

दोन्यूं हाथां में काम

खींचती थाक'र

मझली रातां में

पेट की याद आवै

जद कटोरदान में

दो रोटी अर जरा सो

स्याग नीं देख 'र,

मा के हाथ की फूली रोटी

अर

पिताजी को मूंडा में सूं काढ़'र,

दयो गास याद जावै

पीहर, की याद का दो मोती

ढळक जावै

उण पल अेक फेरो फिर आवै

वाही बैठी-बैठी बेटियाँ

पीहर-सासरा को गेलो

अेक ही पल में पाट लेवै

अर माई का लडाया लाड

अर बाप का सिखाया

पाठ की गठरी

तकियां कै नीचे मेल'र,

सो जावै

सासरा अर पीहर,

दोन्यूं की लाज

निभाबा कै तांई बेटियां।

स्रोत
  • सिरजक : मंजू किशोर 'रश्मि' ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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