म्हैं जांणी नीं छी
के भगवांन के कुदरत नीं
कोई दूजौ
म्हारै खातै बोलण री ठौड़
अबोलणौ मांडैला
ता-पछै होळै-सीक म्हारी भासा उचकाय लेवैला
अर म्हैं ओसियाळौ-सोक
आपरी भासा में अबोलौ व्है जावूला!
असल में मूंन व्हैणौ
किणी आदमी रौ
आपरी भासा में ईज मूंन बाजै
बाकी दूजी भासावां में तौ मिनख
अमूमन मूंन ई रैवै।
अबै म्हैं जिकौ मूंन छूं
इणरौ अरथ छै
म्हैं संसार री सगळी भासावां में मूंन छूं!
अबै कोई भासा जद म्हारै टंगड़ी मारैला
म्हैं पड़तौ-आखड़तौ ई जावणी चावूंला
आपरी भासा रै आंगणै।
ठाह नीं
पण आ बात हथीकी
के म्हैं म्हारी भासा में बांची छी
‘सरुवात’
अर इण बात री ई ठाह छै
के म्हनै दूजी भासावां पढायौ ‘अंत’
अबै छेहला में कुण म्हारै ठोकर मारैला
म्हनै इण री परवा नीं
म्हैं हर हाल में करूंला पाछी
नवी सरुवात
क्यूंके म्हारी ओळूं में म्हारी भासा छै!