म्हारी चावनावां

कोरो खयाल बण’र

नीं उड़ै

नीं कोई जाळ बुणै

म्हूं तो थारै आसै-पासै

बंध्योड़ी गऊ रै खूंटे तांई

घूम रैयी हूं

म्हारै बछड़ियै रै सागै

कदास थे खोलो इंये नै

तद म्हारै सागै-सागै बछड़ियो

भी मुगती पावै

रिळमिळ खावां

नूंवो चारो।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत (अप्रैल-जुलाई 2021) ,
  • सिरजक : कृष्णा आचार्य ,
  • संपादक : शिवराज छंगाणी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर
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