दिन धोळै झांवळा

अर रात नै रातींधो

आख्यां हुवतां-सोवतां पाण

जींवती माखी गिटण रा आदेश

पाड़ोसी री पराई आख्यां सूं

देखण री मजबूरी।

मिनख-सो

डरावणो रूप

सिर पर दो सींग

लपलपांवती जीभ

बध्योड़ा नख

नै बळती-बळती

राती-राती दो आंख्यां

देखो—

धायोड़े धाड़वी रै हाथां में

भूख मिटावण खातर

तिस बुझावण खातर

थारै खेत रो है या

म्हारै खेत रो

इण बेलड़ी रो है या

उण बेलडी रो

उण रे मेलै-कुचळै हाथां में

गोळ-मटोळ-सो मतीरो है

या मिनख रो माथो?

सुणो! ठोलै री ठरकाण

मुक्कै री मार

मुक्का-ठोला लागतां पाण

प्राण त्याग

आपरो आपो बिसराय

पुरसीजसी

धायै रै बाजोट पर

बीज बिखरता फिरसी

धरती माथै

बंस रै बचाव खातर

गिरी-पाणी

भूखै री भूख

तिसायै री तिस

मिटावता ही आया है।

घुरड़ो अर खायो!

तीखै-तीखै नखां सू

बटका भरो तेज-तेज दांतां सू

गिरी पींचता जावो

आपरी काया सींचता जावो

रस मिलतो ही रैसी

पीवो, जीवो अर मटरका करो

खुपरी हुवो या खोपरी

पाणी पीयां पछै

गिरी गटकायां पछै

खावणियो फेंकसी ही'ज

रुळती फिरसी रेत में खेत में-

झाड़कां में,बांठकां में

सिफळिया खासी

रात'नै रोझड़ा

खेत रा खेत उजड़ता देख

बेलां री बेलां

बांझड़ी रैवण रो डर

मानखा, चेत!

चेत खुद रै खेत खातर!

चेत-खुद री बेल खातर!

चेत-खुद रै फळ खातर!

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत ,
  • सिरजक : मोहम्मद सद्दीक ,
  • संपादक : माणक तिवारी "बंधु"
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