जुगां सू जोवूं म्हैं

इण हथाळियां बिचाळै

एक चिनी’क सुख री रेख।

म्हारी घिरत विरत री छांव!

म्हारा पलक-दरियाव!

कठैई दीख जावै

थार री छाती में सांस लेवती

सुर-लहरी शंकर दमामी री

दीख जावै कठैई

दिखणादू-पठारां माथै फोग

दीखै कठैई चुगतौ काकरा

पुराणी-पाळां माथै जूनौ बेली हंस

हींयै में हुलसै कदैई डीगा परबत डाकती

दुखां री ठाढी दाझ।

बीजळी रै परळाटै सिरसोई सही

दीख जावै कठैई

महानगरियां में गांवेड़ी

बाळपणै रो मिंत

स्हैर बणतै कस्बै रै असवाडै़-पसवाडै़

बचियोड़ौ दीखै पगडंडियां रो मोड़

तो खबर करजै म्हनै-

म्हारा माणस-गंधी पांव

म्हारी घिरत विरत री छांव!

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : आईदान सिंह भाटी ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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