मनड़ौ चालै

सगळी दिसावां मांय

पण मारग तो

दोय मिलै

अेक जावण रो

अर दूजो आवण रो

म्हूं चालूं

जा’र पाछो आवण रे

सीधे मारग माथे

कदै चांद रे सागै

तद

कदै सूरज रे सागै

तपते तावड़ै मांय।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत (अप्रैल-जुलाई 2021) ,
  • सिरजक : कृष्णा आचार्य ,
  • संपादक : शिवराज छंगाणी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर
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