बरसै चारूं कूंट चांनणों,

अंधकार नै आवै लाज।

जिको बूकियां पांण कमावै,

वो धरती पर करसी राज।

धरा-धरम नै छोडै कोनी,

शोषण पर तो पड़सी गाज।

जिको बहासी खूंन पसीनो,

वो ही अब तो कर सी राज।

आग उकाळै सीळो पांणी,

भक-भक करती निकळै भाप।

बिजळी फाटै मेघमाळियै,

उमस्यां धरती, बढ़सी ताप।

लियां भूंगळी फूंक चूल्हो,

आँधी आप जगावै आग।

इसी घड़ी में दमदम करती,

लपट सजावै जुग रो भाग।

हळ रै सागै आस ऊभरै,

निकमो छोलै छाती आप।

श्रम जद पीठ थपथपावै तो,

ढीलै मुंह पर पड़ज्या थाप।

बात बात में बात नीसरी,

बणगी लंबी-चौड़ी बात।

बात बणायां सरसी कोनी,

अजे मोकळी ऊंघै रात।

जिकै हाथ में हँसियो-कसियो,

वो ही हाथ बण्यो मज़पूत।

जिकै हाथ में जेळी खुरपी,

वो जीवैलो सावळसूत।

जिकै पगां में रुळी गरीबी,

वैं पग हुया पांगळा आज।

जिकै पगां सूं माटी लिपटो,

वै पग बण्या गरीब-निवाज

बीज उघाड़ै मूंदी पलकां,

कूंपळ न्हावै झिरमिर मेह।

नाज नीपजै खेतड़लां में,

दम-दम दमकै उजळी देह।

हिळमिल बावै, हिळमिल काटै,

हिळमिल रैवै करसो आज।

जगमग खेती, झिळमिळ खेती,

खिळणमिळण री उमर दराज।

जुग हुँकारै, शंख बजावै,

झालर सी झणकै झणकार।

जणैं-जणैं कै हिवड़ै बसग्यो,

मिनखपणै में भीज्यो प्यार।

ले पसवाड़ो अब मत सो रे,

जाग जाग किरसाण मजूर।

रात बीतगी अरे देख अब,

सूरज रै माथै सिंदूर।

इण बेळा में ले अँगड़ाई,

जगती जोत धरा पर देख।

डूंगर बळती घणी देखली,

पगां बळी नै झुक-झुक देख।

चूको मत किरसाण मजूरो,

मुलक पसीनो माँगै आज।

धरा-धरम नै जिको राखसी,

अब तो वो ही करसी राज।

स्रोत
  • पोथी : किरत्याँ ,
  • सिरजक : मेघराज मुकुल ,
  • प्रकाशक : अनुपम प्रकाशन, जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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