म्हैं धापग्यो हूँ

छाण-छाण'र सुळय्योड़ै धान नैं

घेटा अर इल्यां-को छण्या नीं

रैय हीज गया।

पाणी में मिलाई

लाल दवा घणी ही बार

पण को मिटी नीं बास

रैय हीज गई।

मनै रैय-रैय'र याद आया करै

दादी री कैयोड़ी कहाणी -

हे भगवान!

म्हैं तो रैयग्या ज्यूं रा त्यूं ही

आज सोचूं

क्यूं?....क्यूं?....छेकड़ क्यूं?

कठै ही नीं हुई नूवीं बात

सागी डांडा-सागो कु'वाड़ा

सागी शतरंज-सागी मात।

गळी रै खूणै रुप्योड़ौ

जंग खायोड़ौ-मुड़्योड़ौ

बो थंभो ऊभो है हाल तांई

बियां रो वियां

कियां जगै लट्टू?

कियां मिटै अंधारो?

अर अठीनै

घेटा'र इल्यां रो आटो

खावण लाग रैयो हूँ

म्हारै सागै-म्हारो बेटो

पीवण लाग रैयो हूँ बासतो पाणी

म्हारै सागै-म्हारो बेटो

अर देखण लाग रैयो हूँ

मुड्योड़ो, जंग खायोड़ो थंभो।

पर बो आजकाळै

रोटी खावतो-पाणी पीवतो

फुरण्यां फुलावै-भंवारा ताणै

अर बे-बखत

म्हारै रूं-रूं में धूजणी-सी छूटै।

कदै-कदै बो

थंभै रै बा'र-कर लपटीजै

दांत पीसै अर जड़ां सूं खेंचै।

मैं देखू आख्यां फाड़-फाड़

कांई बो थंभैने उपाड़ण रो जतन करै?

अर फेर बे-बखत

म्हारै माथै में

जाणै भतूळियो चालण लागै।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत ,
  • सिरजक : वासु आचार्य ,
  • संपादक : माणक तिवारी "बंधु"