म्हें देखी ही
थारी आंख्यां में
अेक सोवणी झील
झील अर आंख्यां में
म्हनै नी लाग्यो
घणों आंतरो
उण समै
उणमें निजर आवतो
अेक सैनाण
म्हारो
थारो
आंपणो
लारला मौसम में
ऊनो-ऊनो बायरो बाज्यो
इंदर कोप सूं गाज्यो
तड़ा—तड़ होयगी
भड़ा—भड़ होयगी
गड़ा पड़्या घणां जोर सूं
गुलाब बिखरग्या
थापड़ा थोर सूं
अबै
थारी आंख्या खामोश है, सूनी है
नीं चिलक है
नीं मुळक है
सून्याड़ ही सून्याड़
डूबती गैरी
और गैरी डूबती
म्हनै दरप है, डर है
कठैई थारी आंख्यां री गैराई में
झील कोनी डूब जावै
गमग्यो सैनाण
थारो, म्हारो, आंपणों
मुळकणों
समझावणों
पलकां ने झुकावणों
अबै तो उण ठौड़
उठै है ऊंची-ऊंची झाल
धूजै म्हारो काळजो
देख’र काळ विकराळ
गमग्यो
झील रा पिंदा में आंवणों
मोती मिलैला जरूर
बिसास राखणों
मूंघा—मोतियां री चमक रो
होठां पै आंवणों
कठैई कोई बगूलो
चुगवा रे मिस
चुरा तो कोनी लेग्यो
आंपणीं तीखी चोंच सूं
उणां मूंघा—मोत्यां नै
थारी डूबती झील सूं
कठैई नूत तो नी नाक्या
नुगरा हंसां नै
भगत भेस बण्या बगुला ने
अबै
निजरे कोनी आवै
थारी आंख्यां में
अेक सोवणी झील
सैनाण गमग्यो
जो करावतो हो अहसास
थारो, म्हारो, आंपणों
बिरखा रो
बसंत रो
मधुमास रो
अेक दूजा रे बिसास रो
अबै
कोई लहर कोनी सुणावै सनेसो
आंपणै मौजूद होवण रो
झील भी है
आंख्यां भी है
पण
डूबतो सूरज कैवै सनेसो
किणी रै खोवण रो
चुप—चुप
छिप—छिप रोवण रो।