छव म्हीनां रै छोरै नै

लीरालीर लूगड़ी

में पळेट वा

पाळ माथै न्हाकै

उपरांत

आंख्यां रै धूंवाड़ै सूं

बातां करती खंदेड़ौ खौदै

तासळियां मांटी भर

अेडै सिर पुगावै

अेडै सिर पुगाय उगणीस जणां नै

देस भगत देसराज

चमजूंवां सूं हेत हेरै

टसका करतौ तकली टेरै

अैस में अैसांण रौ घोळ देय

हुकमतराय

करमफूट्यां री कड्डी में डोइयौ हिलावै

अर कानूंनां रौ किच्चरघांण

करियां बिनां

हाकम नै कीकर आवड़ै

सायबी रौ सूथण पैर्‌यां

सरप चकचूंदर री गत झेल्यां

सात्यूं मामां नै

सिलांम सिरकांवतौ साजै

सीधौ भांणजियौ

पण सेर दळियै री देगची में

सवा सेर कोनी खटावै

सैंत-मैंत रौ चन्नण घिंसता

सोरठियै दूवै में

मरवण री बातां सुणता

सूरदास अर घूरदास—

सगळा

स्यांणा नै सुलखणां बाजै!

दाझै तौ भलां भोळी भैंण रौ

चीर दाझै

खीर रौ सबड़कौ लियां पछै

भैंस मरण रौ धोखौ कोनी

जद तांई भात खावणां

पातळ सूं हेत राखणां

आं इजगर-बाजीगरां रै

आलमपुर में

कविता रौ किरपांण लियां

ऊभौ कवि

ज्यूं कैर रौ ठूंठ

तूटै पण लुळै कोनी

आप-आपरा करतब सेवता

खरड़ाटा लेवता

भरतलाल परतलाल चरतलाल मरतलाल

नेताई-नुगराई ताज-किलंगी नै मैफल रा

मौकळा सुपना देखै

नींद में मुळकै

ढोलियै सारै छुरी पळारै

वां रो माय...जलमदेवाळ...पांगळी जन्ता।

वीं रा नैण राता

निजरां में झळ हीयै में हदभांत हरख

दांत कटकटाय वा गणदेवता नै

लोई रौ छांटौ देवै

कैवता है कै पांगळी डाकण पूतां रौ भख लेवै।

स्रोत
  • पोथी : पगफेरौ ,
  • सिरजक : मणि मधुकर ,
  • प्रकाशक : अकथ प्रकासण, जयपुर
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