थारी दुनिया रा अरथां नै

खोलतौ-उधेड़तौ सोचूं-

मां! थारी तौ बातां रौ

चोर बोलतौ सपाट साच।

बंतळ करता परी-पंखेरू-रूंख

कीड़ी-कबूतर काग।

थारी बातां रौ राजा करतौ

सदा अधल न्याव।

बातां री रितुवां

कदैई नीं जावती खाली।

पांगर जाता बाजरिया खेत।

बिन हूंकारै

नीं हिलती रात।

मां! म्हारी इण जीयाजूण

नीं मिळिया थारी

दुनिया रा मानवी।

म्हारै जीवण री रितुवां में

पड़िया काळ-भैराळ

बळियोड़ा मिळिया बाजरिया खेत।

नीं कियौ कदैई राजा अधल न्याव।

टोटका ज्यूं सुणावै लोग

थारी 'करुणाळू-कहाणियां'

भोपां रौ अखाड़ौ बणग्यौ आखौ देस।

लीर लीर अहिंसा री लीरियां

चींथड़ा बणगी मिनखाजूण।

आज ऊगै आभै में गिगनारू चांद

मांझल रातां ढळती व्हैला

किरतियां कोई 'मरवण' खदबद खीचड़ौ।

थारै उठण रौ आभास

आज ऊगतौ व्हैला तारौ-परभातियौ

कठैई आज होवतौ व्हैला

दुनिया में अधलन्याव।

पण मां म्हारी जीवण री

इण 'डम्बररोड़'

कदैई नी ऊगीयौ 'तारौ-परभातियौ'।

नीं दीठौं गगन रौ गिगनारू चांद।

नीं होयौ म्हारी जूण में 'अधल-न्याव'।

खद-बद खीचड़ौ रांधणौ

भूलगी थारी 'मरवणां'।

आज टी. वी. रै उजास

सोवै घर रा चांद।

बाजै सरै-सांझ परभातियां

रंग सारा धरती रा ऊतरै

रूपाळै पड़दां रै आकास।

बस गायब है आज मां!

थारी ऊमाई गोद।

आंख्यां रौ हेजू रंग।

हूंकारै आळी बात।

वै ममताळू-हथाळियां

अर थारी रितुआं रा बाजरिया खेत।

स्रोत
  • पोथी : मायड़ ,
  • सिरजक : आईदान सिंह भाटी ,
  • संपादक : मीनाक्षी बोराणा
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