धरती रो
वो पैलो बेटो
सागर री लेहरां पर चाल्यो।
निज प्राणां रो
पायो लोही,
पण
धरती जतनां सूं पाळ्यो।
जुग-जुग तक,
लाखां बरसां तक,
करतो रैयौ
द्वन्द्व
सागर सूं
मच्छ जीव बण।
पण
मुस्किल हो,
घणों कठण हो,
जळ सूं
आ पांणों ई थळ तक।
हार
नहीं पण मांन सक्यो हो,
वो अभिमानी
गरवीलो
धरती रो बेटो।
कर्मशील
मेहणत रो मांटी,
रैयो
जूझतो
नित्त अनवरत।
बाधावां सूं
विपदावां सूं
अर मारग री पीड़वां सूं।
सफळ हुयो कीं
बड़ो हुओ तो
सेवट
पग बढ़ रैया अगाड़ी,
कच्छप बण थळ कांनी चाल्यो,
पण
फंस ग्यौ
जाय दळदळ में।
अठी,
उठी
घणा फटकार्या,
उण
अपणा पग हाथ
मोखळा।
पण किस्मत रा फेर
भाग री फूटी हांडी,
लिखी करम में खोड़,
जीव नै मिळी न डांडी।
पड़ियो-पड़ियो सड़्यौ
उठै ई,
कई जुगां तक
रैयो भोगतो
आ पीड़ा भी।
किन्तु
अठै भी कोनी कळ हो,
जीव!
जीव में खुद बेकळ हो,
आफळतो
निकळण दळदळ सूं
पण नहीं हालै बस
बेबस हो,
कळ-कळीज कादा में,
मन में वो
बेहद बैचैन हो।
कीकर, पण,
हां कीकर?
बैठ्यो रै मन मार्यां,
कीकर
सरसी हिम्मत हार्यां?
निकमांई
तो नहीं सुहावै,
आळस,
नींद,
नहीं मन भावै,
मैहणत नै मनड़ो अकुळावै।
वो
कर्मठ हो!
कर्मवीर हो!!
नित्त
उठै सूं छूटण रा
जतन अलेखूं वो करतो हो।
भरतो हूंस
जुटातो साहस
धरतो पग-पग ठावा ठीमर,
खम ठोक जूझतो
हालातां सूं
अपणी
सगती भर।
मच्छ बण्यो पांणी में रमियो
कच्छप बण दौड़्यो थळ कांनी,
बण वराह दळदळ ने खूंद्यो
हार न मांनी वो अभिमांनी।
पादप बण जळ अर दळदळ में
जड़ां रोप पग ठाम्या निज रा।
अब थळ सूखी धरती कांनी
जावण सारू जोर लगायो
पग ठाम्योड़ो फेर उठायो
डग भरियो अर हाल्यो आगै
आगै…आगै, आगै अर आगै।
फेर
अेक दिन
वो भी आयो।
आयो वो दिन,
जद,
जद पिरथी फूली न समाई।
इतरी हंसी
अरे!
मत पूछो!
इतरी हंसी
धरा उण दिन तो,
अंग अंग
खिळ गयो कंवळ सो
हरखाती पिरकति मुळकाई।
नुंवी-नुंवी
ओढ़ी
हरियाळी री चूनर तौ
उणमें
रंग रंगीला
फूलां रा मोती टंकवाया।
धवळ
पळकता
पळ-पळ करता
हेम मण्डया
ऊंचा ई ऊंचा
घणा फूटरा
अणत डूंगरां रा
पेहर्या आभूसण।
वेणी गूंथी
फेर उणै
सागर री
इठलाती
बळ खाती
इतराती लहरां सूं।
मदमाती
नीळी आंख्यां में
मेघां रो
आंज्यो उण काजळ।
मारुत मतवाळो
वो भी तो
हो आज हरख में
मस्ती में हो इतर्यो
जांणै
छक-छक ने छाकां पी ली व्है,
अर अलमस्त हुओ
मद छकियो
मदहोशी में
इतरातो फिरतो हो।
पवन
छेड़तो घड़ी-घड़ी
मदरी बयार सूं
धरा प्रिया नै
लाड-कोड सूं
चूनर सूं करतो अठखेली।
पकड़ खेंचतो,
तांण उड़ातो,
फर-फर अम्बर बीच चढ़ातो।
मदछकियो
मतवाळो
जांणै होस गंवाया।
क्यूं न्हीं आज धरा हरखाती?
पवन
भळै क्यूं रैतो लारै
क्यूं न्हीं वो इतरो इतरातौ?
आज
सफळ कर जतन
भेदियो लक्ष्य
ध्येय ने सिद्ध कर लियो।
जुग-जुग रो संघर्ष
सार्थक कियो जूझ नै
जीत गयो हो हारी बाजी।
पिरथी पुत्र
धरा रो जायौ
पंचभूत रो पुतळो
वो ई ढीट महीसुत
जयी हुयो हो आज जळधि पर।
विश्वासां सूं भर्यो
गरब सूं तण्यो
मांण में भर्यो
आंण सूं अड़्यो
आपरा ठीमर ठावा पग
भूतळ पर आज धर्या हा,
उण धती सुत।