हर बार म्हैं ई म्हैं हारूं बेटी, म्हैं ई म्हैं हारुं।
थनै जाई जद सुणिया मोसा म्हैं
जांणै थारो बेटी होवणो म्हारो कसूर है।
थनै बेटां साथै उछेरी
तो जणो जणो टोकी म्हनैं
म्हारै पिंड रा ई दो खंड,
सोचो तो कुण बत्तो कुण ओछो।
तो ई धोबा-धोबा ओळमा घालीज्या म्हारै पल्लै।
थनै टोकी, बरजी समाज रै संकेतां
पण मेहणा सुण्या म्हैं।
आंगण में थारी बिगसती काया सूं डरती,
थूं बारै जावती तो अपलक उडीकती म्हैं
अर छपर-पिलंग माथै थारै पौढ़ियां
रात्यूं चमक चमक पौरा दिया म्हैं।
व्यावणसार होई
तो लोगां आरपार करदी आंगळी म्हारै
नींद उड़गी म्हारी।
परायै घर विदा कर
अबै म्हैं सुणूं थारै सासरा री सिकायतां
अर अबखायां थारै मन री।
थारै कारण हारी समाज सूं
अर अबै हारगी थारा सूं
हर बार, म्हैं ई म्हैं हारूं बेटी, म्हैं ई म्हैं।