सारो देश आज हेलो सुण,

जाग उठ्यो ले अंगड़ाई।

कायर पग माण्डै अब कोनी,

जाणै मौत लार आई।

काळ सिराणै पर बैठ्यो है,

अरे बैरियो भागो रे।

पिलराई पीळी धरती पर,

कद सूं बोलै कागो रे।

अमन और आजादी री,

तकदीर बसै भेळै म्हारै।

करमठोक भींता नै फौड़ै,

लड़ै-भिड़ै पाछळ हारै।

आजादी री कीमत नै तो,

नहीं पिछाणी बैरी रे।

अपणै पगां कुँहाड़ी बाई,

कुबद गळै में पैरी रे।

चोरी-छानी हद में बड़के,

झूठो रौब जमावै रे।

चालै खुद साम्राजी चालां,

म्हानै बुरौ बतावै रे।

धौखै सूं अधिकार जमाके,

अपणी धरा बतावै रे।

देखो लोगो कोटवाळ नै,

उल्टो चोर दबावै रे।

जलम दियो धरती म्हानै,

पाळ-पोस के बडा कर्‌या,

इणी धरा पर खेल्या खाया—

सांस-सांस में गीत भर्‌या।

आज धरा री छाती ऊपर,

यो कुण पापी आयो रे।

हिमागिरि खड्यो रगत में भीज्यो,

यो कुण जाळ रचायो रे।

जिको गूमड़ो घणों पंपोळ्यो,

वो ही अब फोड़ा घालै।

अब खाग्यो विस्तार देखल्यो—

दर्द करै, अब दिन घालै।

नस्तर आज लगाणो पड़सी,

अणचाया करणां होसी।

हिंसा री हिंसा जद होसी,

मौत हिचकियां भर रोसी।

धरती माता, हेलो मारै

अब कुण रगत चढ़ावैलो।

माता री मरजाद पुकारै

कुण-कुण शीश कटावैलो।

स्रोत
  • पोथी : किरत्याँ ,
  • सिरजक : मेघराज मुकुल ,
  • प्रकाशक : अनुपम प्रकाशन, जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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