आखा राजस्थान री भासा नै नटग्या थै!

थे साजिस करी है

म्हांनै गूंगा राखण री,

परम्परा सूं तोडण री!

दळिद्री भावनावां रा सबदां सूं

म्हांरै ग्यांन रा विकास री

थै बांध रहया हौ माठ!

म्हारी आस औलाद थांनै माफ कोनी करैली!

हाथां री मूठियां बांध, पग हिलाय रोवणौ

म्हारी भासा ही,

म्हारी भासा ही मुळकणौ पालणा में!

सवदां नै सुण म्हैं होठ हिलावण लागौ

गूंगा सरणाटा नै चीरग्या म्हारा अरथहीण सम्बोधन

मा! पापा! मामा!

कीड़िया, मैणमख्यां, सांपां

अर बिसूंद्रियां रा हुया करै धुन-संकेत!

चौपायां, चमचेड़ां, माछळियां,

समझलै नाद रो धमाकौ!

पण आखा प्रांणी लोक में

आपरी बणायोड़ी भासा व्है फगत मिनख रवनै!

भासा सगळां री व्है

भासा धन ब्है समाज रौ!

अेक अेक सबद व्है अेक विचार

सुणौ जित्तौ गुणौ!

जिकौ सुणै कोनी, वौ बोलै कांई?

म्हारी आतम चेतना फूली-फळी

समाज रा सिरज्योड़ा सबदां सूं

चेतना परगट हुई म्हारी वांणी में!

वांणी री मारफत

म्हैं जीतण री खपत करी कुदरत नै!

म्हैं पूजिया सबद,

सबद नै बणायो ब्रम्ह,

देवी मांनली सुरसत नै!

सबद म्हारौ जोर! मंतर री ताकत ही सबद में!

बदळती दुनियां रौ हर पळकौ बणै, म्हारा विचार

म्हारै विचारां रा साधन है सबद!

सबद सबद जोड़, म्हैं बणाई भासा

परम्परा म्हनैं सूंपी जिकी विरासत

वा इण भासा में;

इण भासा री मारफत हुयौ म्हारै ग्यांन रौ बिगसाव!

थै अणजाण हौ म्हारै ग्यान री

नई जूनी सामरथ सूं

संस्क्रति रा संख बजावणियां!

म्हैं तो थांरी भासा सीख,

थांरा व्यापार अर विचार सीख लेवांला पलक में!

थांरी परम्परा फगत

लारला तीस चाळीस बरसां री!

थै रै जावौला अणजांण

म्हारै समाज री हाजरी परम्परा सूं

जिकी फगत म्हारी भासा दे सकै

सगळो नुकसाण थारौ है!

अेक आखा समाज रा विचारां सूं

जीवण अर भासा सूं रहयां अणजाणं

थै कित्ताक दिन राज कर सकौला म्हांरै माथै।

मत देवौ मांनता म्हारी नै

थांरै संविधान नै

भासा रौ जुद्द म्हैं जीतांला

अर अेक दिन ठिरड़ थानै

बगाय दां ला इतिहास री ऊकरड़ी माथै!

स्रोत
  • पोथी : बिणजारो पत्रिका ,
  • सिरजक : सत्यप्रकाश जोशी ,
  • संपादक : नागराज शर्मा
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