म्है जाणूं
अरावली रा इण बीहड़ मगरां में
किस्तर बणैं टापरी?
टापरी जिकी घर है सफर है जिनगाणी मांय
भाग सूं अगाड़ी
पुरुसारथ दिखावण रो
पूरी ताकत लगा’र
मगरां री ऊभी चढ़ाई पै चढ़ जावण रो।
अै अरावली रा रांकड़ कांकड़ देवै
घास-फूस, डाण्डा, बळीण्डा
गारो-गोबर, पाणी-पाथर
टापरी ऊभी करणैं
भींता आंगणों बणावण नैं
छान छत ढाकण नैं।
टापरी में सदीव रैवै डर
चौमासा मांय
भींतां ढसबा रो, बैवण रो
स्याळा मांय ठंडी ठार
अर उन्हाळा मांय
गरम लू री मार।
हे जगत रा मालिक!
आप ही हो रक्षक
क्यूंकै
जठा तांई रैवै टापरी
घर गिरस्थी रैवै हरी-भरी
चाइजै आपरो प्यार
बण्यो रैवै म्हारो अधिकार।