पैल्यां सूं ही कुळै जिका, वै
छू मत म्हारै मन रा घाव।
पैल्यां सूं ही सुधि रै सागैं घुळै
इसी तूं, छू मत म्हारै मन री बात।
होठां पर ही रैवै
म्हारै मन रो राग।
छू मत मन रो भेद,
काळजो दुख-दुख ज्यावै।
और बारणै बात न आवै॥
छू मत म्हारै मन री धार,
जिकी काळजै भीतर बैवै।
जिकी हियै रा तार झिंझोड़ै।
छू मत म्हारै मन रो स्वाद!
जिको अणूंता लोगां नै तो खारो लागै।
पण म्हारै प्राणां रै मीठैं चिंतन भीतर
घुळ-घुळ ज्यावै।
छू मत म्हारैं मन री आँख,
जिकी समंदर री गहराई नाप-नाप
मोतीड़ा ढूंढै।