किण साज्यो सिणगार

जगत सै किण पर रीझ रह्यो?

किण री करुणाधार

जगत सै जिणसूं भीझ रह्यो!

चांद बोरलो गूंथ

पोय अण-गिण तारा मोती!

झीणै घूंघट में ऊजळ

पळकै किणरी जोती?

कुण रसवन्ती नार

जगत सै किण पर रीझ रह्यो?

किण रै अपलक निरखण सूं

मनड़ो भीज रह्यो?

कुण साज्यो सिणगार

जगत सै किण पर रीझ रह्यो?

किण री करुणाधार

जगत सै जिणसूं भीज रह्यो!

खिल-खिल करता फूल करै

हस किणरी अगवाणी?

हरख-बधावा किणरा गावै

पंख्यां री वाणी?

भमरां रै गुंजार

जगत सै किण पर रीझ रह्यो?

कलियां रै किलकार भला

क्यूं हिवड़ो भीज रह्यो?

किण साज्यो सिणगार

जगत सै किण पर रीझ रह्यो?

किणरी करुणाधार

जगत सै जिणसूं भीज रह्यो!

उडतो आभो किणरी

सतरंगी चूनर है?

नभ-गंगा री सड़क पार

किण रूपल रो घर है?

किणरै नवसर हार

जगत सै इतरो रीझ रह्यो?

किण रो अभिसार

काळजो सै रो भीज रह्यो?

किण साज्यो सिणगार

जगत सै किण पर रीझ रह्यो?

किणरी करुणाधार

जगत सै जिणसूं भीज रह्यो!

स्रोत
  • पोथी : सगळां री पीड़ा-मेघ ,
  • सिरजक : नैनमल जैन ,
  • प्रकाशक : कला प्रकासण, जालोर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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