गये बरस लागा

तीन सौ पैंसठ झटका

जमीं-कम्प रा अैड़ा

हरेक झटकै सूं

इंछा री मीनारां में

खिंचती गई तेड़ां।

बरस समाप्ती साथै केई

बिखरण लागगी

खिरण लागी पान ज्यूं

सूख-सूख आसावां।

म्हैं

ऊझड़ बस्ती रै सून्याड़ में ऊभौ

नुंवै बरस रै स्वागत सारू

नुंवी मीनारां खड़ी कर रैयौ हूं

जूंनी मीनारां री

साळ-संभाळ टूट-भांग

म्हारै नांवै चढगी है।

लारला बरसां ज्यूं

म्हारै साथै भटकैला

खेलैला, देखैला

नित बदळतौ

जोड़-तोड़ रौ खैल—

हळदियां देहियां री

ऊंडी आंख्यां मांय चिलकंतै

पांणी माँय तूटती

डूबती सूरज री किरणां’र

किरणां रै टूटण सूं उपजती

पांणी मांयली लाय।

‘हाय’ कैवण रौ रिवाज अबै नीं रैयौ

छोरां रौ

दड़ियां रमण रौ सोख गयौ

हाथां में लियां फिरै बारूदी गोळा

बणा-बणा टोळा

बरस री देह माथै पड़ैला इज घाव

देखणी पड़ैला

विग्यांन रै जुग में

अग्यांन री अंग-भंग करती धार

‘कृषि प्रधान देश’ में

बरसो-बरस

थळियै काळ री मार।

फाटोड़ा चींथरा में

उघड़तै डील नै

आवती लाज

डील उघाड़ण सारू

चालती फैसण री खाज।

बरस रा बारा महीनाँ माथै

देसी कैलेंडर में दियोड़ा

बारा विदेशी चितराम

बरस माथै चैंठ्या व्है डाम।

सरदी में—

सूखोड़ी अमचूर ज्यूं

अकड़ीज्योड़ी

पिकासो रै चितराम नै

मूरत करती

नगर-पालिका री बाट उडीकती

किणी नागरिक री ठंडी देह

गरमी में—

भट्टी ज्यूं सिळगती सड़क माथै

लोह ज्यूँ तप्योड़ी देही माथै

लूवां रा घणां नै झेलती मानखौ

आभै में गाळ बगावतौ

जिंदगानी री ठेला-गाड़ी ठेलै।

बरसात में—

झरते टापरियै टाबर नै

थपक्यां देय सुवाणती लुगावड़ी नै

ठपका देय’र रुवाणतौ

अर खुद नै सुवाणतौ मरद

लाल तिकूण रा तीनूं खूणा तौड़ै

बरस भर—

फूल गांठां खिलै अर बिखर जावै

तणियोड़ौ रैवै कांटां वाळौ थोर।

बगत रा पड़ता जाय निसांण।

मजूर रगत बेच करै मजूरी

खाडौ खाली रौ खाली

रातौ रंग चिलक रूपाळी

भरती जाय तिजोरी

धुकधुकियौ हड़ताळ करै

नीं रुकै बगत री फेरी।

जन, गण अर मन री आवाज सूं

ओळ खीजै गणतंत्र अर स्वाधीनता दिवस

सहीदां रा टोला

क्यू होमिया प्रांण

भूलगा अवस।

राजनीती रै हाथां

व्हैतौ रै देसभगती रौ खून

भोळी गाडरां रौ

बगतौ-बगत उतरती रै ऊन

दीवाली माथै बिजली फैल

होली—रंग रौ नीं, प्राणी रौ खेल।

घाव माथै घाव लागै

पीड़ माथै पीड़ ऊगै

घायल बरस गुड़कती-पड़तौ

बड़ै दिनां गिरजाघर पूगै

ईसू री मूरती सांमी ऊभ

गिणै उणरा घाव

अर खुद रा गिणीजै कोनीं।

गयै बगत सूं पाछौ

फिरीजै कोनी।

ओळूं रै ओळै-दौळै देय चकारा

बूढौ बरस बाबौ

चढ़ जावै इतिहास पगोथ्यां

अर म्हैं आय जावूं पाछौ

फेर अक नवै बरस रै स्वागत सारू

आसांवां अर इंछावां मीनार बणातौ

संभावनावां आंकतौ उठै

जठै

ढिगलौ बणी तेड़ खायोड़ी

इंछा री मीनारां म्हारी

आसावां रा सूखा पांन

जठै री टूट भांग

अर साळ-संभाळ म्हारै नांवै लिखियोड़ी है।

स्रोत
  • पोथी : जुड़ाव ,
  • सिरजक : पारस अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : धरती प्रकाशन ,
  • संस्करण : 1
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