बण सोची ही
आग
जद ई ओट्या हा
राख में रोटिया!
आग ही बा,
रोटिया री सौरम सूं
सरसै आंगणो।
बण सोच्यो,
हुवणो रात
हुयली...
झबरक तारां छाई
चूनड़ी
हरखतै आस विस्वास
आंगणै मांड्या
चांद मांडणा
अखूट रात ही बा।
सूर उगाळी सारू
पूरियो चोक
भखावटै रो
चरच्या फूल च्यानणै रा,
सूरज ही बा।
बण सोच्यो
पाणी...
नदी री बगती बेगवान
धार हुयगी!
अथाग समंद पेटो
पूरी बांथ भर।
बा ही जद
हुयगी सो कीं
पल्लै री गांठ में
संभाळ सपनां
सगळां रा।
जाणा हां
ढाळै ढळती
ओरी री झौ
कुलखारी हुवै
हुवै ओरी रो ढाळो
पड़ती छोत रो बै'म
पण
मोरपांखी जुगत
धुंवो धूप रो,
सूरजी री किरणां रो परस
रोपसी सामा पग
ढळतै ढाळै रो
भोडो किचरणै रो
पण लियां!