सूरज स्यूं पैल्यांई
जाग ज्यावै बाबो
बाबै स्यूं पैल्यां
जागै उण री खांसी
जाग ज्यावै घर, गळी, पड़ौस।
सिर पर बांध मंडासो
हाथ लेय गंडासो
चाल पड़ै बाबो
नित रोज रै जुद्ध में जूझण नैं।
लड़ै खुद स्यूं
भूख स्यूं
जमारै स्यूं
नीं सुलह हुई
नीं जुद्ध रुक्यो।
अंत नीं आवणो ईं जुद्ध रो
इण जलम रै मांय तो।
ओ अबखो जुद्ध है—
भूख स्यूं
आ लड़ाई है रोटी री।