अे दिवलै री जोत! गोत नै भूल मतां

बावळती! कीं सोच, अधर में झूल मतां

उजळायत रै अैनाणै कीं बाताँ कर!

ओढ़’र सोयो,

मिनख अँधारै री कामळ

बुध रै भरम-तणी आगळ!

ऊंधो है सिंसार-बिरछ,

पण सत सावळ!

मिनख बण्योड़ो क्यूं बागळ?

माया नै जोवै,

सत री गत नै जाणै कोनी!

काया पर मो’वै,

क्यूं मत ठौड़-ठिकाणै कोनी?

अे दिवलै री जोत! अँधारो मेट दखां!

बावळती! तू पूग हियै में ठेठ दखां!

सोनै-जिसी सोवणी, निरमळ रातां कर!

उजळायत रै अैनाणैं कीं बातां कर!

चूंधीजी आंख्यां,

गमग्यो सूंवों-मारग!

पैंड-पैंड है ठग-ई-ठग!

अँधियारै सूं घिर्‌यो देख!

सारो अगजग!

आवळ-कावळ मेलै पग!

चेताचूक चींत,

धरम-करम सूं परबारी!

आवाडूळ बींत,

है रीत-नीत सूं दरबारी!

अे दिवलै री जोत! गीत नै गीत बणा!

बावळती! तू आज, हार नै जीत बणा!

असर-च्यानणै-पाण ऊजळी ख्यातां कर!

उजळायत रै अैनाणै कीं बातां कर!

स्रोत
  • पोथी : कूख-पड़यै री पीड़ ,
  • सिरजक : किशोर कल्पनाकान्त ,
  • प्रकाशक : कल्पना लोक प्रकाशन
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