म्हैं

भीत माथै टांगियोडौ

अेक आइनों हूं

हर घड़ी

थनै देखतौ रेवूं

थू म्हने जौवतौ रेवै

चैरै माथै

कांई लिख्यौ है बताय दूं

थूं राजी हो नाराज

म्हैं सच्चाई बयान कर दूं

दिन भर चैरै री

मुळकाण देख

थारौ चैरौ कांई कैवै है

बताय दूं

अेक दिन आखिर

नीचे पड़ टूट जावूं

किरचा-किरचा चुगती

थारी आंगळियां नै

घायल कर दूं

क्यूं आइना रौ साच है

हर टैम

सच्चाई सूं घायल कर

रू रू करणौं।

स्रोत
  • पोथी : बगत अर बायरौ (कविता संग्रै) ,
  • सिरजक : ज़ेबा रशीद ,
  • प्रकाशक : साहित्य सरिता, बीकानेर ,
  • संस्करण : संस्करण
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