सुख पर उद्धरण

आनंद, अनुकूलता, प्रसन्नता,

शांति आदि की अनुभूति को सुख कहा जाता है। मनुष्य का आंतरिक और बाह्य संसार उसके सुख-दुख का निमित्त बनता है। प्रत्येक मनुष्य अपने अंदर सुख की नैसर्गिक कामना करता है और दुख और पीड़ा से मुक्ति चाहता है। बुद्ध ने दुख को सत्य और सुख को आभास या प्रतीति भर कहा था। इस चयन में सुख को विषय बनाती कविताओं का संकलन किया गया है।

उद्धरण2

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“हिसाब अर बिणज रौ सुख तौ सबसूं लांठौ सुख! बाकी तौ सै पंपाळ।”

विजयदान देथा
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“सुख, लाभ अर कमाई रौ कांई पार!”

विजयदान देथा