परम पुरुष के पंथ चल्या जिन, हिन्दू तुरक का पंथ जु त्यागा।
गोरख दत्त की चाल लई उर सेव, निरंजन की हित लागा।
नाम कबीर ज्यूं प्रीती करी हरि, ऐसे जु ध्यान अलख कै लागा।
हो छीतर दादूजी दास वस्या तहां, जहां ज्योति झीलि मिलि नूर अथागा॥