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अंजस सोशल मीडिया
संत साहित्य पर संवैया
त्रिभंगी छंद
संवैया छंद
कवित्त
साखी
दूहा
पद
चौपाई
सबद
अरिल्ल छंद
कविता
छंद बेअक्खरी
संवैया छंद
18
हरि बियोग बिघन मूल
रज्जब जी
धरेही को ज्ञान धरेही को ध्यान
रज्जब जी
जदि आरंभ कौरंभ इंदव
गोकल जी
दुखी दिन रात परी बिललात
रज्जब जी
ब्रह्म स्वरूप भया मिलि ब्रह्म मै
छीतरदास
हो पीय बियोग तजे सब लोग
रज्जब जी
परम पुरुष के पंथ चल्या जिन
छीतरदास
परी झर माहिं निकसत नाहिं
रज्जब जी
ब्रहम ही ज्ञान रु ब्रह्म ही ध्यान
छीतरदास
भजै संसार लगै न पुकार न होइ करार
रज्जब जी
जे पर सूर लहै सु महूरत
रज्जब जी
सूर स्यंध छेरे खाइ
रज्जब जी
सबद की सांगि लगी जेहि आंगि
रज्जब जी
देव अलेख की सेव करे नित
छीतरदास
सिंहिनी सुमति काढ़ि जे
रज्जब जी
आइ मिलैं गुरु दादू कौं जे जन
छीतरदास
राम रिझाई कियो अपने वसि
छीतरदास
दादु को आसन ब्रह्म सिंहासन
छीतरदास