बिरला होवे बीर, परै पराई पीर में।
खांड दूध री खीर, चाटै सब ही, चकरिया॥
भावार्थ:- हे चकरिया, ऐसे साहसी (परदुख-कातर) पुरुष कोई से ही होते हैं, जो पराई पीड़ा में पड़ते हैं (दूसरों के कष्ट में सहभागी होकर उसके निवारण का प्रयास करते हैं) । बाक़ी तो सारे ही (स्वार्थी) लोग दूध एवं शर्करा (के सम्मिश्रण) से बनी खीर चाटते हैं (अर्थात् दूसरों के आनंद में आनंद लेते हैं)