होणहार रो हाल, जाणै कोई न जगत में।
किण विध किण पुळ काळ, चक्र चलासी चकरिया॥
भावार्थ:- हे चकरिया, जो हानेहार है (भविष्य में होने वाला है), उसका हाल (विवरण) संसार में कोई नहीं जानता। किस प्रकार से, किस सयम, काल चक्र चलाएगा है (और हमारी जीवन-लीला समाप्त करेगा) —यह सब अज्ञात है।