होणहार रो हाल, जाणै कोई जगत में।

किण विध किण पुळ काळ, चक्र चलासी चकरिया॥

भावार्थ:- हे चकरिया, जो हानेहार है (भविष्य में होने वाला है), उसका हाल (विवरण) संसार में कोई नहीं जानता। किस प्रकार से, किस सयम, काल चक्र चलाएगा है (और हमारी जीवन-लीला समाप्त करेगा) —यह सब अज्ञात है।

स्रोत
  • पोथी : चकरिये की चहक ,
  • सिरजक : साह मोहनराज ,
  • संपादक : भगवतीलाल शर्मा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार
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