ग़ज़ल3 अेक भायौ छै अेक बाई छै, अेक म्हूँ अेक वाँ की माई छै घणी अंधारी छ’ या रात, पण हुयो कांई न तू ई सुधर्यो न म्हूँ अ'र यो सारो बीत बी ग्यो