अेक भायौ छै अेक बाई छै, अेक म्हूँ अेक वाँ की माई छै।

छाँ मनख च्यार पण या म्हँगाई, जाणै सुरसा की माई जाई छै॥

हाड तोड़ाँ छाँ, पेट काटाँ छाँ, बाट तड़का का नत न्हाळाँ छाँ।

सारी बैमार्‌याँ तन में राखां छाँ, आखा दन की या कमाई छै॥

टाबरां लेरां म्हँ बी भूखा मराँ, कर्ज पुरखां को कांई चुकतो कराँ।

सूद का पानड़ा पै गूंठौ धर्‌यो, थाँनै चोखी जुगत भड़ाई छै॥

नांव कांई छै, कांई म्हाँ की जात, म्हाँ गरीबाँ की कांई छै औकात।

जै छै वा थाँ की छै बणाई बात, यो कसाई छै अर नाई छै॥

थाँ का खाता में चढ’री म्हाँ की जमीन, ब्याज भरतां तो चुक गी पीढ्यां तीन।

फेरूँ बेगार में खटाँ छाँ ‘यकीन’, कसी तकदीर म्हाँ ने पाई छै॥

स्रोत
  • पोथी : राजस्थानी गंगा (हाड़ौती विशेषांक) जनवरी–दिसम्बर ,
  • सिरजक : पुरूषोत्तम ‘यकीन’ ,
  • संपादक : डी.आर. लील ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ज्ञानपीठ संस्थान
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