सतगुर सौं जो चाहि बिन किया।
यो परि दोष न दीजिये मिलि अमृत पीया॥
ज्यूं ससि कै सरधा नहीं कोई कंवल बिगासै।
मुदित कमोदनि आप सौं बांधी उस आसै॥
ज्यूं दीपक कै दिल नहीं को पड़ै पतंगा।
तन मन ही मैं आप सौं मोड़ै नहिं अंगा।।
ज्यूं कंवल कोस आपै खुलै मनि मधुकर नाहिं।
भंवर भुलाना आपु सौं बींधा यूं माहीं॥
ज्यूं चंदन चाहै नहीं कोई बिषधर आवै।
जन रज्जब अहि आप सौं सो सोधिर पावै॥