जाके उर उपजी नहिं भाई। सो क्या जाणैं पीड़ पराई॥टेक॥
ब्यावर जानें पीड़ की सारा। बाँझ नार क्या लखै बिकारा॥
परबरता पत को ब्रत जानैं। बिबचारण मिल कहा बखानैं॥
हीरा की प्रख जवरी पावै। मूरख निरखै कहा बतावै॥
लागा घाव किरावै सोही। को गद हार जाके दर्द न कोई॥
राम नाम जाके प्रान अधार। सोइ राम रस पीवनहार॥
जनदरियाव जाणैगा सोई। जाके पेम की भाल कलेजै पोई॥