जीव बटाउ रे बहतो भाई मारग माहिं॥टेक॥

आठ पोहर का चालणा, तोहि घड़ी इक ठाहरे नाहिं॥

गरभ जनम बालक भयो रे, तरणापै ग्रहवान।

ब्रधा मृतक फिर गर्भ बसेरा, तेरो यो मारग परवाँण॥

पाप पुन्न सुख दुःख की रे, बेड़ि थारे लागि रे पाय।

पाँच ठगाँ रे बस पड़्यौ रे, कब घर पहुँचे जाय॥

चौरासी बासो बस्यो रे, अपणा कर कर जाण।

नहचै नहचल होयगो रे, पद पूँचै निरवाण॥

हर बिन तोकूँ ठाहर नाहिं रे, जहाँ जावे जहाँ काल।

जनदरिया मन उलट जगत सूँ, अपणा राम सम्भाल॥

स्रोत
  • पोथी : दरियाव- ग्रंथावली ,
  • सिरजक : संत दरियाव जी ,
  • संपादक : ब्रजेंद्रकुमार सिंहल ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर
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