अब मोहिं नाचत राखहु नाथ।

चारि पहर चारयूं जुग नाच्यो, पर परबसि पर हाथ॥

तृष्णा ताल पखावज पाखंड, स्वर स्वारथ सब बाजे।

क्यूं नर कुमति उपंगई राखा, रागर दोष निवाजे॥

नाना नेग पहरि पग नुपुर, चंचल चरण चलाये।

चौरासी घट भेष रेख सोई, सब संगीत खिलाये॥

फोरी फिरियो मान मन मानी, हुरमी हेत सुं डारी।

सरग भूमि पाताल परे पग, भीख लही भिखारी॥

रज्जब रम्यो रजा की करम गति, कौल कुंजन पावै लाल।

रीझै राम दरस दत दीजै, पूरौ तौ दीजै प्रतिपाल॥

स्रोत
  • पोथी : रज्जब बानी ,
  • सिरजक : रज्जब जी ,
  • संपादक : ब्रजलाल वर्मा ,
  • प्रकाशक : उपमा प्रकाशन, कानपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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