दुनियां रोवै पण कुण सोवै?

चोर्‌यां का धन सूं मन धोवै?

कुण अपणा लोगां सूं मन धोवै?

कुण अपणा लोगां नैं छळतो जावै धीरां धीरां?

कुण मंगर का आंसू पूरै बैठ्यो जळ की तीरां?

कै तो म्हूं

कै म्हारो भोळो जीवड़ो।

काळो

पण बगलां सूं धोळो जीवड़ो॥

उगता सूरज नैं कुण पूजै?

चुगलीखोरां सूं कुण धूजै?

खायां नैं जाळां सूं बूजै?

कुण छानै चुरकै खांचै पाणी कै बीच लकीरां?

कुण टपका का गोळा की भी करबो चावै चीरां?

कै तो म्हूं

कै म्हारो भोळो जीवड़ो।

खोरो

नारोळी को गोळो जीवड़ो।

आतां का चरणां नैं पकड़ै?

मीठी बातां सूं मन जकड़ै?

सेळो बोलै कदी अकड़ै?

जातां जातां पाण माजणा कर दे लीरां लीरां?

रगड़्यां जावै कुण कोल्हू सूं ओरां की तकदीरां?

कै तो म्हूं

कै म्हारो भोळो जीवड़ो।

झूठा

बैरागी को भोळो जीवड़ो।

स्रोत
  • पोथी : सरवर, सूरज अर संझ्या ,
  • सिरजक : प्रेमजी ‘प्रेम’ ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य संगम अकादमी ,
  • संस्करण : Pratham
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