जद

जीवण-मूल्यां अर जिनगाणी पे

हथियार टिक जावै

अणु-परमाणु, हाइड्रोजन बम री मार सूं

रेडियोधर्मी विकिरणां रा वार सूं

मिनखपणो खतरा में पड़ जावै

तो

धरती री मुळक निजरै नी आवै।

जद

सुवारथ री नींव पे

सगती-प्रदरसण रो मैल चिणावै

अपणायत रा उपासक

तोड़फोड़, आगजनी, हत्या अर दंगा पे

उतर जावै

शांति रा ब्यौपारी

शस्त्रां री दुकान सजावै

हथियारां री होड़ में

युद्ध री आंधी-दौड़ में

अेकमात्र आसरो

युरेनियम रैय जावै

तो

धरती री मुळक निजरै नीं आवै।

जद

आदमी अंधारो-पसंद हुय जावै

आंख्यां रोसणी नै नीं चावै

संत-पुरुषां री मीठी वाणी

कानां ने नीं सुवावै

अव्यवस्था री आंधी आवै

ग्यान रो दिवलौ

बुझ-बुझ जावै

तो

धरती री मुळक निजरै नीं आवै।

जद

अन्तस रो दिवलौ

मिनख रो ग्यान बधासी

हथियारां रा ढेर री ठौड़

मिनखां री सूरतां निजरै आसी

हिरोशिमा-नागासाकी रो इतिहास

काळी रात री बात बतासी

नुवी भोर सूं

अन्धारे रो अन्त अर

परकास री सरूआत होसी

आखो विश्व परिवार बणैला

युद्ध रा सायरन री ठौड़

शांति, सद्भाव, पिरेम रा बोल गुंजैला

मिनख-मिनख ने देख’र

बंदूकां रा खटका नीं दबासी

हेत सूं गळे लगासी

तो

धरती री मुळक निजरै आसी।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत काव्यांक, अंक - 4 जुलाई 1998 ,
  • सिरजक : रमेश मयंक ,
  • संपादक : भगवतीलाल व्यास ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी
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