सौरम सूं मदछक

माटी री आंख्यां में

रंग-बिरंगे सपनां रै गूमेज माथै

अेक कूणै में हंसती

बिखरयोड़ी फूलां री पांखड़ी

धरमजलां

घर कूंचां

धरती अर आकास री

गैराई नापण आळा

पगां रै मन में

किणी तीरथ सारू सवाई साध

रात-दिन

तोपां रै धमाकै सूं

धडूकतै गढ रो

सूनियाड़ रै तळाव में

तर-तर डूब जावणो

हरया बिरछ रै मैदान में

खामासी कांनी

टुकर-टुकर देखता

सूखै पत्तां रो

आखरी सलाम

तो इचरज हुवै

सूखतै हाड-चांम रै साम्है

ऊभी कोठ्यां रै मांय

गरीबी री मजाक उडावता

लोगां री भेदभरी हंसी

म्हारै तो

क्यूं नी समझ आवै

वखत थारी भासा।

स्रोत
  • पोथी : पनजी मारू ,
  • सिरजक : गोरधनसिंह सेखावत ,
  • प्रकाशक : भँवर प्रकाशन
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