उगायो भोर रो तारो, समै रो कण सुरीलो कर

अमर आसीस ले प्रभु री, हियै में चानणो भर-भर

उगायो भोर रो तारो।

सरबबेधी चलै पग-पग, दसूं दिस बाण रो फेरो

उठा गांडीव तूं अरजुन, अमर कर मृत्यु में वर-वर

उगायो भोर रो तारो।

सधी है साख सांसा री, हवा रा लैरका आवै

समै रो वायरो चालै, अंजळी फूलड़ां झर-झर

उगायो भोर रो तारो।

गिण्या अर अणगिण्या सगळा, नांव अर काम प्रभु रा धर

अलख ही विश्व आखै में, अेक ही धम्म है घर-घर

उगायो भोर रो तारो।

स्रोत
  • पोथी : भारतीय साहित्य निर्माता शृंखला भीम पांडिया ,
  • सिरजक : भीम पांडिया ,
  • संपादक : भवानीशंकर व्यास 'विनोद' ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम
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