कुण जाणै
ओ मिनख
तिरस रो समन्दर लिये
क्यूं कर जीवै है?
हाय राम!
लोई पीगियो ईसा रो
गांधी रो पीगियो लोई!
सुकरात कै महावीर
मोमद या होवै कोई
आ तिरस अण दीठी आंधी
कद किणनै दीखी है?
हां भाई,
आ तिरस घणीज तीखी है।
हां, आ तिरस घणीज तीखी है
कै तिरस री तिसणा में
रोम रोम दाझ रैयो।
सामै साम समन्दर है,
तो आभै गहडम्बर
बादळ भी गाज रैयो!
हूं तो चाऊं
पी जाऊं–
अगस्त्य बण समन्दर रो पाणी सारो।
तिरस नी देखै कै
पाणी कित्तो मीठो कित्तो खारो
पण, ज्यूं ज्यूं हूं पाणी पीवूं
लागै जियां समन्दर में डूब रैयो!
च्यारूं मेर पाणी ही पाणी है–
कुण जाणै–
मैं पाणी पीवूं हूं कै
पाणी मनै पीवै है।
कुण जाणै
ओ मिनख
तिरस रो समन्दर लिये
क्यूं कर जीवै है?