थूं अर जोबन बावड़ आया हा

अर अेक अणसैंधै मुलक में

आपां अेक डूंगर रै

ऊंचै घासदार ढळाण माथै

चढै हा।

चाणचुकां अेक खुणाऊ ठांयचै माथै

दो चौमासू छपरा दो स्याफ दिरसाव

ढाळ पड़्यै नीजू जीवण में

आपां ठंडी हवा पीवता रह्या

(अेक सुनैरै दीठाव में ऊभा-ऊभा)

अर तळै अळगै तांईं पसर्‌योड़ी घाट्यां

ज्यूं ईं थूं कीं कैवण नै बावड़्यौ

सपनौ दीठ सूं अळगौ व्हेगौ

म्हारा भायला

थूं कांईं कैवणौ चावै हौ?

स्रोत
  • पोथी : परंपरा ,
  • सिरजक : अल्फ्रेड प्रागनेल ,
  • संपादक : नारायण सिंह भाटी ,
  • प्रकाशक : राजस्थांनी सोध संस्थान चौपासणी
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