ब्याव री बरी री कड़प

अर खुसबू सी

थूं...

चैत रै मांय

अधपक्या आम रा सुवाद सी

थूं...

चौमासै में टीबां माथै बैठ'र

लप भर खावतै मोरण सी

थूं...

मझरातां में

चिलकतै उजास में दारू सी

थू म्हारै बारै

थूं म्हारै मांय।

स्रोत
  • पोथी : पनजी मारू ,
  • सिरजक : गोरधनसिंह सेखावत ,
  • प्रकाशक : भँवर प्रकाशन
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