थूं जद
किवाड़ खोल्या
चानणो हुयो!
पंछीड़ा मुळक्या
थन्नै देख...
बिलोवणै मांय झेरणो
थिरकण लाग्यो!
गीड मसळता टाबर,
चानणो देखण आया
चूल्है चढी चाय,
उबाळां री उबासियां
लेवै ही...
म्है समूळो अखबार
बांच नै मेल्यो
पण
किवाड़ खुलणै री
खबर कठै ई नीं छपी ही?
न चानणै रो
जिकर हो कठै ई
बाकी सारी खबरां
म्हारै खातर पुराणी ही!
म्हूं तो फगत,
चानणो देखण आयो हूं
धरती माथै
थांरी रूह रो चानणो!
थांरै हेत रो चानणो!
थारी अणखूटी
यादां रो चानणो॥