थूं म्हारै मनड़ै री मूमल
म्हारै हिवड़ै री मरवण
म्हारै काळजियै री बणी-ठणी
म्हारै अंतस-
जेठवा री ऊजळी।
म्हारै नैणां री सान-
लियां भोर
थूं छाई है आस-पास में
थूं घुळी है
म्हारी सांस-सांस में
म्हारै सोच रो
सूरजमुखी
थारै दरसणां सूं खिलै
म्हारी कल्पनावां रा कबूतर
थारी सुरता रै सुरंगै आभै उडै।
म्हारै आखर-आखर
थूं सरद-चानणी
इमरत बण बरसै
म्हारै सबद-सबद
थूं सावणी-फागणी
सोरंगी अरथ भर दै
म्हारै भावां रै रंगहलां
थूं केसर-किस्तुरी सी महकै
म्हारै विचारां रै मधुमासा
सुरीली कोयलड़ी-सी कुहुकै
म्हारै बिजोग ओळ्यां
थूं चतरण दिवलै-सी
झळमळावै।
म्हारी सै सिरजणां मांय
थूं फुटरापो बण बळ जावै,
म्हारी सै रचनावां
थूं म्हारै हाथां लिखवावै
म्हारा बस हाथ चालै
रचाव थूं ई करावै
थूं नईं, रचना नईं
थूं नईं, म्हैं नईं!