थारां आबा की आस का
गुलाब का फूल की
आज अेक आखिरी पांखुड़ी बी
टूट बखरगी...
म्हारी झोळी भर्या
बहता आसूंड़ा में तर री छै
प्रेम पाणी बिना माछली सी,
म्हारै मनड़ा के
सूखा सावण का रूंख की
दो कूंपळां...
थांरी झोळी में आ'र
बेबस हो'र दुःख में
फड़फड़ा री छै!
देख अस्यो बी
काईं करड़ो होग्यो
मन जाणता तो
काईं बुरो कर्यो नीं
गळती सूं बी गळती हो'गी होवै
जे सुपणा में बी बेअदबी
हो'गी होवै
साची में उफ्फ ताईं
बी नीं करूं!
गळती पूछबो तो दूर छै
आंख्या ई ऊंची नीं करूंगी
जीवण भर कर्यो
इंतजार का फळ में,
बस अेक पल दर्शन को
सुख तो भुगत लेबा दे...
सजा में गरदन कटवा लूं
पण अेक सरत या छै म्हारी
तलवार थांरा
प्रेम सूं उठ्यां
हाथां में होवे
म्हारी गरदन कै ऊपर।