बालम मिलबा बिलखती,
लुआं लगाई लाय।
जुलमी महीणौ जेठ रौ,
तिरिया नै तरसाय ॥
कुबदी आवै काळ में,
इधक महीणौ जेठ।
कीकर दिन दूणा कढै,
थळ धरती में थेट॥
परदेसी री प्रीत रौ,
वाल्हा नहँ विसवास।
काळ बरस रै कारणै,
अबखौ लगै अकास॥
सोरठौ
आयौ जेठ असाढ,
बादल नहँ बीजळी।
गळग्यौ तन रौ गाढ,
बाटां जो जो बालमा॥