हाँ सा, म्हूँ अछूत छै।

अछूत! जींसूं कोई भी अड़ै।

म्हँसूं दूरा रीज्यो खा

न्हं तो,

आपकी ऊजळी काया काळी पड़ज्या

अपावन होज्या?

म्हूँ तो सदा सूंईं आपका चरणा को

चाकर र्‌यो छूं मारा

म्हारी ठौर तो आपकी

पगरख्यां गोडै छै हुकम!

म्हारी सात पीढ़ी

आपकै बारणै पळी छै अर

म्हांका पेटां में

आपका गासड़ा भर्‌या छै

न्हं तो,

म्हाँको तो जनम कोरो आपकी सेवा

अर बेगार करबा बेई होयो छै

भलांईं आप गासड़ो पटकता, तोभी

आपकी सेवा तो म्हांको करम छो

पण वा’ वा’ जी आपको दयालुता।

कै टैम-सैम ज्यार-बाजरी दे’र

म्हां जीवता राख्या

मार्‌या पण मारबा द्या, वरना

म्हाँ को तो बंस ही उगट जातो

म्हारा बांप पै तो

आपकी असीम किरपा छी हजूर

आपका गुण गातो न्ह थाकै छो, म्हारो बाप।

दिवाळी कै दिवाळी सालवार, आप

म्हारा बाप कै स्याफो बंधाता अर

पुवा-पापड़ी ख्वाता

म्हारो घर आपने हमेश अपणोई घर मान्यो

म्हारी जीजी आपकै गोबर करती

अर म्हूँ भैंस्या चरातो

म्हनै याद छै म्हारा बाप को

थकेलो उतारवा बेर्ड, गलास भर’ भर’

काची दारू प्वाता अर

कदी-कदी अटकळ सूं

जीजी कै तांई रुप्यो-आठाना देताई रैछा

आपकी उजै सूं म्हांकी भी आबरू रै री छै हुकम।

आपनै समाज की परवा कर्‌यां बना

म्हांकै तांई इज्जत बख्शी वरना

म्हांकी भी कोई इज्जत छै?

या तो आपकी महाना री छै कै—

आपनै म्हाँकी माँ बैण्यां छानै चुरके सही

पण समै-समै पै गळै लगाई

आप तो सेठ साहूकार छो,

जागिरदार छो, बड़भागी छो बन्दाता

राम जी नै आप, ईं जोग बणाया छो

आपकी छाबा में म्हाँकी पीढयां नै

बगत खाडी छै

आपनै हमेशा म्हांको ध्यान राख्यो छै

म्हारा बापको आपसूं जादा भलो

कुण सौच सकं छो, लेखेई तो

आपनै खो’ छो ‘छोरा’ मत पढ़ाजै, दा’ धूल्या

न्हं तो बगड़’ धूळ होज्यागो

सामै दांत्या करैगो

अर म्हारा बापनै आपकी बात रखाण’

म्हाकी पीढ्याँ की, अर कौम की लाज बचाली

सांच्याँई चोखी होई, न्हं तो

आज म्हूं घर को रैतो घाट को

धोबी का गडक में हो जातो हजूर!

हाल, कम सूं कम

आपकी सेवा को तो मोखो मलर्‌यो छै

देखो इकलव्यो।

इतराग्यो बतायो बेट्टो।

बताओ एक अछूत, अर विद्या?

धरती आसमान को फरको

धोबी की छोरी’र केशर को तिलक

वा तो धन्न छै वाँ दूणाचारी जी माराज नै

जे आपणो धरम खतम होबा सूं बचाख्यो

न्हं तो अछूत अर विद्या?

राम-राम! गजब हो जाती, अनरथ होजातो

अणहोणी हो जाती सा।

एक दन मोत्यो खैरयो छो कै

मीराबाई नै रैदास गरू बणाया छा

बताओ या भी कोई होबा की बात छै?

एक महाराणी’ चमार नै गरू बणावैगी?

काँई गपोड़ा तागै छै लोग

अश्याई बालमीक जी भी म्हांकी

ज्यात काई बतावै छै, पण म्हारै न्हं जँचै

आपकी संगत में रयो छूँ मारा

आष्ठी तरां जाणूँ छूँ कै कांई भी होज्या

पण आदमी नै अपणो

धरम न्हं छोडणी छाइजे

पण आजकाल म्हांका समाज में भी

पढ़ाई की बाताँ चालबा लागगी

नरा’ नेता भी होबा लागर्‌या छै

सूं खै छै कुळजुग

मनख नै अपणो करम छोड़र्‌यो

आपनै न्हं सुणी कै?

म्हाकै साथ का घींस्या को छोरो

सोळवी में पढै छै, ऊँनै काल

सेठ माणक जी में गाळ्या खाडी

अर आप-धाप पै आग्यो,

बताओ, ओलाती को पाणी

मंगरै चढर्‌यो छै!

म्हूँ भी एक संकट में छूं मारा

म्हारो भी छोरो

पढवा जाबा लागग्यो

अर खैबा लागग्यो कै यां सेठ साहूकाराँ नै

आपणो खून चूंस्यो छै अर

यां जमीदारां नै आपणै ठोकरां मारी छै

तो ओर भी नरी’ बाताँ करै छै

एक बात छै मारा, जमानो घणो बदलग्यो।

स्रोत
  • पोथी : ओळमो ,
  • सिरजक : मुकुट मणिराज ,
  • प्रकाशक : जन साहित्य मंच, सुल्तानपुर (कोटा राजस्थान) ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
जुड़्योड़ा विसै