म्हारा बैराग!
छानौ-मानौ बण,
भाभू रै टुकियै मांय
लुकायोड़ी आठ आनी रै जेहड़ौ।
म्हारा बैराग!
लूंठौ बण,
लू री दपटां सागै भींत लीपता
भाभू रै हाथां जेहड़ौ।
म्हारा बैराग!
पवितर बण थूं,
खेजड़ी पूजती
भाभू रै हरजस जेहड़ौ।
म्हारा बैराग!
बण जा
थूं पग भाभू रौ
जिकण पाळ लिया
पगथळियां मांय
ऊंडी दूख रा अलेखूं कपासिया।
म्हारा बैराग!
बण जा थूं
भाभू री आंख्यां,
जिकौ रूनी तौ होसी धाप,
पण किणी नै ठाह कदै ई नीं पड़ियौ।
ओ म्हारा ‘म्हूं’
बखत बीतण सूं पैलां
आतम डांडी परखण सारूं,
मांयली ओळखाण सारूं,
आखौ नीं तौ आधौ ई ठीक,
थूं थोड़ौ ऊजळौ बण जा
कै थूं थोड़ौ भाभू बण जा।