भरोसो हो म्हनैं भारमली माथै!

अेक वार तो हुई पीड़

उणनै म्हारी सेज, म्हारा धणी सूं

रळी रमतां देख!

पण जांणती म्हैं,

भारमली सेवट सोधैला आपरो भरतार!

म्है लुगायां,

सूंप दै, जिकां रा माइत, अेक अणजांण पुरूस नै

बांध दे गंठजोड़ा

कांपती हथेळी धर दै नर रा हाथ में,

गाजां बाजां हजारां गीतां बीच

अगन री साखी, समाज रै सांम्है

सीख लेवां दोरी-सोरी पुरूस सूं करती प्रीत!

तरसां छींकै पड़ी भोग री हांडी नै!

चळू चळू पीवां

अर परसाद ज्यू चढावां माथा रै!

भारमली पोल खोल दी मोटै मरदां री!

फेरा खायोड़ी परणेतां

पूजती परमेसर ज्यूं जिकां नै

पण कोनी दे सकती संपूरण देही रो भोग!

म्हैं करली अेक भूल!

लोकां चावी होयगी रूठी राणी रा रूप में,

ओळखीजै म्हारो म्हैल

रूठी राणी रा म्हैल रै नांव सूं

बदळ कोनी सकूं

जस-देह सूं निकळ नारी देह में!

महाभारत रा गांगेय ज्यूं

म्हनैं जीवणी पड़ी

बिरमचारणी री जूंण

अेक अविचारी निस्चै रो

ढोल बजावण रै कारण!

बरस री अेक-अेक रात

करियां गई कल्पना

भारमली री रळियां री

म्हारा धणी साथै!

अर उणरा पिंड री मारफत

भोग्यां गई भोग मन मन!

म्हैं छांट राखी मरद रा परसेवा सूं

अर भारमली भोग-भोग छितराय मरदां नै

दोनूं पूगा अेक सम माथै

अेक राग सूं, अंक विराग सूं,

'नारी बणावै सो नर'

स्रोत
  • पोथी : निजराणो ,
  • सिरजक : सत्य प्रकाश जोशी ,
  • संपादक : चेतन स्वामी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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