काळौ अर काळौ
अंधारौ घणौ काळौ।
हाड-हाड तोड़्यां जावै
औ काळौ अजगरी कसाव।
अंधारौ—
काळस में गम्योड़ी ढीठ
अंधारौ—
अंतस में बळती आ लाय
अंधारौ—
एक देह कसतौ ई जाय
अंधारौ घणौ काळौ।
अंधारौ घर काळौ
काळी है भींतां सै
काळी छात, काळौ है आंगणौ
टूटोड़ी बारी अर
अधटूटौ दरवाजौ जूझै
पवनमार धूजै
सोधै अठी-उठी
डरप्योड़ी दो आंख्यां
कीं ईं नीं सूझै।
कळझळतै अंतस में
पसरै कीं यूं सवाल
लेय उडी बारी नै
वै आंध्यां क्यूं आई?
दरवाजौ तोड़ दियौ
वो किस्यौ बतूळियौ,
कर दै इण घर उजास
कठै तपे वौ सूरज?
कैवण रौ घर
क्यूं रेवण ज्यूं कोनी
कांईं आ कारा है?
क्यूं कोनौ बरतणै ज्यूँ
दीखत रा लोग अै
कांई अै मिनखां सूं न्यारा है?
सूखोड़ी रोटी बदळै
क्यूं राखै बोटी री आस
मैणत रौ मोल क्यूं
पेट रै तोल सूं छोटो पड़ जावै?
क्यूं इत्ती लम्बी रात व्है!
पीढ़ी-दर-पीढ़ी यूं पसर्योड़ी
हाड़-पिंजर
तोड़ दै दम गुफावां रा जाळ में
अर मारग नीं लाधे।
जुगां बदळतै इतिहास में
नीं बदळै अेक चैरो
छोड़े दै आ कंदरा
इण कारा नै तोड़ दै!
घर बारै
दरवाजै ऊभोड़ै रुंख रौ
पवन पकड़ झंझैड़्यौ डाळौ,
जीवन-मिरतु बिच्चै डोल रैयौ
चिड़िया रौ माळौ।
काळौ अंधारौ घणौ-काळौ।
अंधारौ—
लीर-लीर लीतरा
अंधारौ—
पडूं-पडूं टापरौ
अंधारौ—
रिस्ता सै किरच-किरच
अंधारौ—
बात-बात किच-किच है, थू-थू है।
अंधारौ—
घायल पग सोध रैया रोसणी।
हाथ
हवा में ऊठै घूमै
पाछा आ जावै
उरभाणा पग
ठोकर डर री बेड़ियां
खुभै, चुभै कांटा अर कांकरा
रूंख हेटै देह खोलै
थाकेलै री गांठड़ी
अर बिसाई खावै,
घड़ी आँख लागै
घड़ी चैत आवै।
झोंका हा नींद रा
जाग रा झरोखा हा
दीठ सै अदीठ व्हैतौ
अर अदीठ
दीठ।
आंगळियाँ
पंपोळै देण अंधारै री
काळै मारग ऊग्या
बळता घाव
घाव माथै घाव।
चिगदग्यौ अंधारौ म्हारौ गांव
नीं रैयौ नांव।
जाणै कुण राजा
किण राजा सूं बैर लियौ
वौ फौजी अंधारौ
गांवड़ियौ घेर लियौ
राजा सूं राजा रौ
कैडौ दुम्मीचारौ
देख्यौ हौ लाल रंग
उण दिन वौ अंधारौ।
कांई वौ हड़प्पा
वौ मोअन-जो-दरौ
इण गत नी मिळिया रेत में?
दर्रां सूं-हिमगिरि सूं
दक्खणी पठारां लग
अेक देह पसरयोड़ी
मदवै मद डुबोडी
तीखा नख
राजस री सगती रा
खुरच-खुरच खाज खिणै
खुद री इज देही नै
खुद लौही-झांण करै
क्यूं चूकै अैड़ै में
हमलवार अंधारौ
अंधारौ
अंधारौ।
पसरै ज्यूं जंगळ में लागोड़ी लाय
सूतोडा सिंघ यूं ई सूता रह जाय।
जद-जद वौ आयौ यूं
मांडतौ रगत पगल्या
टिमटिमता दिवलां री
बुझती जोत
तद-तद कूं-कूं पगल्या थरपीज्या
पाषाणी देवां नै सीस झुक्या
अंजळियां
आकासां अरपित व्ही
हवन-कुंड
सगती रौ आवाहन करता हा।
बिन परख्यां सगती नै
सगती कद, कुण मानी
सगती संहार रूप परखीजै
सगती मद उपजावै
गैळ चढ़ै
प्रगटै जद सगती हथियार रूप
सस्तर री धार वार मार करै भारी
अर कुण झैलै वांनै?
अै अंधारी बस्ती री देहां
धारण कर सगती नै
बळी बणै
अपरबळी
बळी चढ़ै सगती नै।
नींव पड़ी, बळी चढ़ी
औ पड़तौ खांडौ
वौ घर खांडौ कर दीनौ
'धै' करतो टुटोडौ टापरियौ बैठगौ।
यूं आयौ अंधारौ
यूं पड़ियौ घाव।
पीड़
आँख्यां में पांणी बण ऊफणै
गुस्सौ
बंद हथेळियां में पसीनौ बण पिघळ्या करै
अेक नुकीलौ चुभाव
अस्टपौर सीनै माथै तण्योड़ौ
मूंडै सूं 'उफ' नीं आवण दिया करै।
कोईडा
मांडै उणरै मोरां माथै
बंधक व्हेणै रौ अैलांन नांमौ
दोयजूण
अध-पेट रोटी बिक्योड़ौ आदमी
बेबस
आवणआळी पुस्ता नै
गिरवी धर दिया करै।
ऊग रैयौ
ऊग रैयौ
ऊगूणै सिंदूरी अगन-पुंज ऊग रैयौ
पळक -पळक आकासां
सूरज-धज फरक रैयौ
दीठ नीं जमै।
खड़... खड़...खड़... । खड़ड़... खड़ड़...
दौड़ रैयौ
दौड़ रैयौ
पूषणी तुरंगा रथ
वक-रेख भोम-खंड नाप रैयी
अस्वमेघ पूजित है
अेक देह पसरीजै
रघुकुळ रौ महाकाव्य
यदुकुळ रौ महाभारत साखी है
कित्ता संबंध अठै
युद्ध-हवन होमीज्या
अैक देह थरपण नै
रगत-धार बार-बार
बार-बार
सगती नै अरपित व्ही
धरम-क्षेत्र, करम-क्षेत्र मानीज्यौ।
टूट रैयौ, तिड़क रैयौ अंधारौ
लीर-लीर अंधारौ
किरच-किरच अंधारौ
घायल कर
घायल है अंधारौ!